पौड़ी: देवभूमि वासियों ने देश के अलग-अलग स्थानों पर जाकर पहचान बनाई है। कुछ लोग तो विदेशों में भी नाम रौशन कर रहे हैं। नाम रौशन करना तो एक बात है, बल्कि पहाड़ के लोग तो पहाड़ी संस्कृति, यहां के पहनावे और खानपान को भी हर दिशा में प्रसिद्ध कर रहे हैं। आज ऐसे ही एक व्यक्ति की हम बात करने जा रहे हैं। उत्तराखंड के पहाड़ों से निकले जसपाल भंडारी दिल्ली वासियों को मडुवे से परीचित करा रहे हैं।
दिल्ली के बुराड़ी में जसपाल भंडारी एक ट्रॉली का संचालन करते हैं। ये एक फूड ट्रॉली है, जिसका नाम गढ़वाल जायका है। नाम से भी लोग ना खिंचे तो मेन्यू में पूरी ताकत है लोगों को दीवाना बनाने की। और फिर स्वाद के तो क्या ही कहने। दरअसल बहुत सारे प्रवासी बाहर जाकर खानपान से जुड़ा व्यवसाय शुरू करते हैं। लेकिन बहुत कम होते हैं जिनकी सोच जसपाल भंडारी जैसी होती है।
अब आप सोच रहे होंगे कि जसपाल भंडारी अलग कैसे हैं। दरअसल पौड़ी जिले के गांव जोगीडा ब्लॉक नैनीडांडा निवासी जसपाल सिंह भंडारी पुत्र स्व नाम मंगल सिंह भंडारी पहाड़ी खाने को लोगों की थाली में जगह दिला रहे हैं। वह दिल्ली वासियों के साथ साथ यहां आने वाले लोगों को मडुवे से बने रोल खिला रहे हैं। जी हां, मडुवे के रोल से जसपाल रोजगार भी कमा रहे हैं। साथ में लोगों को पहाड़ के स्वादिष्ट व सेहतमंद व्यंजनो से रूबरू करा रहे हैं।

जसपाल भंडारी ने केवल 15 साल की उम्र में घर छोड़ दिया था। पहाड़ों पर बसे छोटे से गांव से कुछ कर गुजरने के लिए निकले जसपाल भंडारी के कदम दिल्ली जाकर रुके। इतनी छोटी उम्र में उन्होंने होटल का काम करना शुरू कर दिया। बता दें कि पिछले 19 सालों से होटल लाइन में काम कर रहे जसपाल भंडारी ने इस दौरान होटल का सारा काम सीख लिया। कुशल कारीगर बनने के बाद जसपाल भंडारी के दिमाग में खुद का कुछ आइडिया आया। जसपाल भंडारी की मानें तो वह केवल बर्तन नहीं धोना चाहते थे।
जसपाल के परिवार में कुल 10 सदस्य हैं। वह परिवार के एकलौते कमाने वाले हैं। वह दिल्ली में अपनी मां, पत्नी और दो बच्चों के साथ रहते हैं। उनकी आर्थिक स्थिति कोरोना काल के बाद से ही बिगड़ गई है। जसपाल भंडारी ने बताया कि साल 2020 में कोरोना के कारण लॉकडाउन लगा तो होटल व्यवसाय बर्बाद होने लगा। इस दौरान परिवार का पेट पालने के लिए उन्होंने मडुवे के पकवानों वाला फास्टफूड स्टॉल खोल दिया जो बुराड़ी हीरा स्वीट्स के पास हैं।
बुराड़ी में वह लोगों को एग रोल, वेज रोल, पनीर रोल व अन्य तरह के रोल बनाकर खिलाते हैं। इसके अलावा नूडल्स को अपने ही अंदाज में जख्या के तड़के के साथ बनाते हैं। जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं होता है। जसपाल कहते हैं कि वह गांव की दाल व अन्य उत्पाद भी दिल्ली में बेचते हैं। ये जसपाल भंडारी का उत्तराखंड प्रेम ही है जो वह बाहर रहकर भी पहाड़ों को नहीं भूले हैं। साथ ही यहां के व्यंजनों को इतना बढ़ावा दे रहे हैं।
जसपाल भंडारी का कहना है कि हमारा सौभाग्य है कि हम उत्तराखंड से हैं। देवभूमि में पैदा होने वाले मडुवा, भट्ट व अन्य दालों में अमृत होता है। पहाड़ी खाने को कोने कोने में ले जाने से लोगों को भी फायदा होगा और पहाड़ों को भी। उत्तराखंड के युवाओं को पहाड़ों के किस्से सुनाना भी जसपाल भंडारी की दिनचर्या का एक बड़ा हिस्सा रहता है।
कोरोना काल के कारण पूंजी खत्म हो गई तो परिवार को गांव भेजना पड़ा। मगर जसपाल भंडारी अभी भी अपनी पूरी मेहनत से लगे हुए हैं। बहरहाल वह जल्द ही अपने प्रदेश वापिस आकर कुछ नया करने का मन बना रहे हैं। गांव वापिस आकर जसपाल भंडारी पहाड़ी खाने के लिए और युवाओं के लिए काम करना चाहते हैं। वाकई ऐसी नेक सोच को सलाम करना तो बनता है। जसपाल भंडारी का शुक्रिया कहना बनता है कि वो पहाड़ के खाने को इतनी बुलंदियों पर ले जा रहे हैं।