सुकून के लिए दो बहनों ने छोड़ी लाखों की सैलेरी, मुक्तेश्वर में शुरू किया अपना काम

हल्द्वानी: इंटरनेट के अधिक इस्तेमाल ने युवाओं को ज्यादा महत्वकांशी बनाया है। ये कई लोगों का कहना है लेकिन इसी इंटरनेट ने उन्हें अपनी जमीन से भी जोड़ा है। उत्तराखंड के कई ऐसे युवा हैं जिन्होंने दूर रहकर अपने गांव के बारे में जाना और फिर गांव के युवाओं की सोच को बदलने का फैसला लिया। सोच केवल दो-तीन लेक्चर देकर नहीं बदलती है। उसके लिए परिश्रम और कर्मठ होना पड़ता है। ऐसा ही कुछ नैनीताल के मुक्तेश्वर में ऑर्गेनिक फॉर्मिंग कर रही कुशिका शर्मा और कनिका शर्मा  ने किया। करीब 7 साल पहले दोनों दिल्ली में सेटल थे। लाखों की सैलरी थी लेकिन उनका मन पहाड़ों ने अपनी ओर झुकाएं रखा। ज्यादा वक्त दोनों अपने मन की आवाज को नजरअंदाज नहीं कर पाए और अपने लोगों को रास्ता दिखाने का फैसला किया। इस काम में उनके परिवार ने उनका साथ दिया और अब उनके संघर्ष की कहानी युवाओं को प्रेरित करती है।

कुशिका और कनिका ने शहर की आराम भरी जिंदगी को पीछे छोड़ा और मुक्तेश्वर में ‘दयो – द ओर्गानिक विलेज रिसॉर्ट‘ शुरू किया। ये कन्सेप्ट थोड़ा अलग था। वह अपने काम से लोगों को रोजगार देना और शिक्षित करना भी चाहते थे। पहाड़ों में सदियों से खेती होती है लेकिन स्थानीय लोगों को आधुनिक तकनीक के बारे में नहीं पता। दोनों बहनें स्थानीय लोगों को जैविक खेती के प्रति जागरूक करने लगी। वह चाहती थी कि क्यों पहाड़ के लोग बाहरी उत्पाद खरीदे अगर हम उन्हें खुद पैदा कर सकते हैं। दोनों बहनों का कहना है कि जब युवा गांव लौटेंगे और स्थानीय लोगों को जागरूक करेंगे तो ही पलायन को रोका जा सकता है। नई तकनीक का परिचय जरूरी है, नहीं तो युवा इस क्षेत्र में पीछे रह जाएगा। उनका कहना है कि भीड़ से अलग कुछ करना है तो साहस दिखाना होगा।

कुशिका और कनिका ने उत्तराखंड के नैनीताल और रानीखेत से पढ़ाई की। बचपन से ही उन्हें पहाड़ों से प्यार था लेकिन हर किसी की तरह भविष्य को सवारने के लिए उन्हें उत्तराखंड छोड़ना पड़ा। कुशिका ने एम.बी.ए किया और कनिका ने दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया से मास्टर्स की डिग्री हासिल की। कुशिका ने करीब चार साल तक गुड़गांव की एक मल्टी नेशनल कंपनी में बतौर सीनियर रिसर्च एनालिस्ट के रूप में कार्य किया और कनिका को हैदराबाद में आंत्रप्रेन्योरशिप में स्कॉलरशिप मिल गई। इस दौरान उन्हें कई नामी कंपनियों के साथ काम करने का मौका मिला। काम की वजह से अधिकतर उन्हें बाहर ही रहना पड़ता था लेकिन जब भी उन्हें मौका मिलता तो दोनों अपने परिवार से मिलने के लिये नैनीताल पहुंच जाती थी। अपने माता-पिता के बीच उन्हें सूकून की प्राप्ति हुई जो शहर में नहीं था। घर से लौटने के बाद दोनों का मन उदास रहने लगा तो उन्होंने नौकरी छोड़कर गांव के लोगों के साथ मिलकर ऑर्गेनिक खेती करने का फैसला किया।

अपने गांव मुक्तेश्वर पहुंचने के बाद उन्हे तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ा। ऑर्गेनिक खेती स्थानीय लोगों के लिए नई थी। कुशिका और कनिका उन्हें अपने साथ जोड़ना चाहती थी और विश्वास कायम करने में उन्हें वक्त लगा। सबसे पहले दोनों बहनों ने किसानों की स्थिति का जायजा लिया। उन्होंने पाया कि यहां की जिंदगी खेती पर ही निर्भर है लेकिन जागरूकता ना होने के वजह से कृषि उत्पादन शहरी बाजारों तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। वहीं ऑर्गेनिक खेती को लेकर भी मुक्तेश्वर में कोई जानकारी किसानों के पास नहीं थी तो उन्होंने सबसे पहले इसकी बढ़ती मांग और फायदों के बारे में बताया। किसानों को उन्होंने प्रशिक्षण भी दिलाया।

किसानों को लगातार नई तकनीक के बारे में पता चलते रहे, इसके लिए वह खुद रिसर्च करा करती थी। दोनों ने दक्षिण भारत व गुजरात के कई राज्यों का दौरा किया। पूर्ण प्रशिक्षण लेने के बाद साल 2014 में दोनों बहनों ने मिलकर मुक्तेश्वर में 25 एकड़ जमीन पर खेती का कार्य शुरू किया और ‘दयो – द ओर्गानिक विलेज रिसोर्ट’ की स्थापना की। दयो शब्द का अर्थ है स्वर्ग…

दोनों बहनों का कंसेप्ट थोड़ा अलग था। उनकी कोशिश थी कि रिसोर्ट में आने वाले महमानों को खेती की तरफ आकर्षित किया जाएगा। छुट्टियों में कुछ नया सीखने के लिए हर कोई तैयार रहता है। उन्होंने तय किया कि हमारे रिसोर्ट में सैलानी को घर जैसा अनुभव होना चाहिए। सबसे पहले 5 कमरों वाले मुक्तेश्वर के इस रिसोर्ट में कमरों के नाम संस्कृत भाषा रखे गए जो प्रकृति के पांच तत्वों पर आधारित है। रिसोर्ट के कमरो के नाम है उर्वी, इरा, विहा, अर्क और व्योमन। यह अपने आप में अनोखा है। जिस तरह घर पर हम कुछ भी कर सकते हैं, उसी तरह सैलानियों को भी खाना बनाने से लेकर सब्जी तोड़ने की छूट उन्होंने दी। अपने इस काम में उन्होंने करीब दो दर्जन स्थानीय लोगों को जोड़ा और रोजगार दिया। इसके अलावा वह खेती के साथ गांव के बच्चों की शिक्षा की तरफ भी ध्यान देती है।

The Better Uttarakhand Desk

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3 thoughts on “सुकून के लिए दो बहनों ने छोड़ी लाखों की सैलेरी, मुक्तेश्वर में शुरू किया अपना काम

  1. Jitendra Singh 27 Jul, 2021 at 11:52 am

    देवभूमि की संस्कारी बहनें लाजवाब कुछ हट के

  2. दीपक जोशी (मुक्तेश्वर से) 27 Jul, 2021 at 3:35 pm

    बहुत ही अच्छा काम किया सुन कर बहुत ही अच्छा लगा

  3. Naveen joshi 28 Jul, 2021 at 5:57 am

    Good

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