हल्द्वानी: महेंद्र सिंह धोनी…क्रिकेट का एक ऐसा सितारा जिसने भारत के फैन्स को वो सब कुछ दिया, जिसके वो हकदार थे। एकलौता कप्तान जिसने आइसीसी की तीनों ट्रॉफी टीम इंडिया को जिताई। महेंद्र सिंह धोनी जैसा कप्तान, फिनिशर, विकेटकीपर शायद कभी कोई दूसरा ना मिले। हालांकि एक तरफ जहां धोनी के प्रशंसकों की संख्या अनगिनत है। वहीं आलोचकों की गिनती भी कोई कम नहीं है।
अगर यह कहें कि उत्तराखंडवासियों को धोनी से अपार शिकायतें हैं, तो गलत नहीं होगा। शिकायतें इस तरह कि धोनी कभी आधिकारिक तौर पर कबूल नहीं करते कि उनका पैतृक निवास स्थान उत्तराखंड है। आज धोनी के उत्तराखंड से लगाव की बात होगी और खूब होगी। मेरे लिए यह बताना जरूरी है कि मैं धोनी का प्रशंसक और उत्तराखंड का निवासी भी हूं।
धोनी का स्वभाव
दरअसल महेंद्र सिंह धोनी को बारीकी से परखने वाले लोग यह समझते हैं कि धोनी का स्वभाव कैसा है। ऐसा बहुत कम बार हुआ होगा जब धोनी ने अपने मुंह से अपनी तारीफ की है। उन्हें खुद के द्वारा किए जा रहे नेक कार्यों का बखान करना पसंद नहीं है। यही वजह है कि धोनी के किसी भी चैरिटी दान की खबरें कभी सामने नहीं आती।
धोनी की देखरेख में चलने वाले अनाथालय जैसे कई संस्थान धोनी की वजह से चर्चाओं में नहीं रहते। माही को हमेशा से गुपचुप तरीके से काम करना पसंद है। धोनी “एक हाथ से दान करो तो दूसरे हाथ को भी भनक ना लगे” वाली श्रेणी में आते हैं। शायह हर किसी को पता होगा कि उत्तराखंड के अल्मोड़ा में धोनी का पैतृक गांव है। यह बात आगे काम आएगी, जरा ठहरिए।
उत्तराखंड से कनेक्शन
महेंद्र सिंह धोनी को अपना प्रचार करना कतई पसंद नहीं है। इसका ताजा उदाहरण हाल में घटित एक घटना से मिलता है। एमएस धोनी को बीसीसीआई ने जब टीम इंडिया का मेंटर नियुक्त किया तो धोनी ने फीस लेने से इंकार कर दिया। खास बात तो ये है कि इसकी पुष्टी धोनी की तरफ से नहीं बल्कि बीसीसीआई की तरफ से ही की गई थी।
बहरहाल धोनी से भले ही उत्तराखंड के लोगों को नाराजगी हो, मगर वह देवभूमि के दुलार को नहीं भूले हैं। आधिकारिक तौर पर यहां का नाम नहीं लेते तो क्या, पहाड़ी शैली को तो याद रखते ही हैं। बता दें कि एमएस धोनी ने हाल ही में ईजा फार्म नाम से रांची में एक आउटलेट खोला है। जिसमें जैविक और शुद्ध चीजें कम रेट में उपलब्ध कराई जाती हैं।
पहाड़ से निकला है धोनी का “ईजा फार्म”
क्रिकेट को अलविदा कहने के बाद माही ने रिटेल बिजनेस क्षेत्र में कदम बढ़ाए गैं। उन्होंने गृह नगर रांची में सुजाता चौक के पास एक आउटलेट खोला है। जिसका नाम ईजा फार्म है। यहां पर धोनी के फार्महाउस में उगने वाले जैविक फल-सब्जियों और दूध की ब्रिकी की जाती है। बेहतर गुणवत्ता, कम रेट होने के चलते लोगों की भीड़ हमेशा यहां पर लगी रहती है।
गौरतलब है कि सैंबो इलाके में स्थित धोनी का फार्महाउस है। जहां 40 एकड़ जमीन पर फल और सब्जी की खेती होती है। यहीं के उत्पाद ईजा फार्म आउलेट पर जाते हैं। सबसे खास बात है इसके नाम है। आप उत्तराखंड से हैं तो आपको पता होगा कि पहाड़ों पर मां को ईजा कहा जाता है। ऐसे में धोनी ने आउटलेट को ईजा का नाम देकर देवभूमि के लिए अपना प्यार जरूर दिखाया है। हालांकि वो कभी आगे आकर खुद से नहीं कहने वाले कि देखिए, मैंने यह नाम रखा है।
रेट कम क्वालिटी ज्यादा
रांची में धोनी के आउटलेट में आर्गेनिक सब्जियों में मटर, शिमला मिर्च, आलू, बींस, पपीता, ब्रोकली मिल रही है। इसके साथ ही गाय का दूध और देशी घी एवं स्ट्रॉबेरी भी उपलब्ध है। गौरतलब है कि उक्त सभी चीजों की कीमत यहां पर मार्केट के मुकाबले खासा कम है। जो कि धोनी के ईजा फार्म की विशेषता है।
बता दें कि फार्महाउस में कड़कनाथ मुर्गे का व्यवसाय भी शुरू किया है। हाल ही में एमएस धोनी ने मध्यप्रदेश के झबुआ से कड़कनाथ प्रजाति के मुर्गों के चूजे मंगाए थे। इतना ही नहीं रांची में एक बड़ी गौशाला का भी निर्माण किया गया है। जहां पर 300 से ज्यादा देसी गायों को रखा गया है। इसमें साहिवाल और फ्रीजन गायों की नस्लें भी मौजूद हैं। इन गायों का दूध भी कई महीनों से रांची के बाजारों में बेचा जा रहा है। कुल मिलाकर धोनी का मकसद बाजार में शुद्ध और जैविक चीजें लोगों के लिए उपलब्ध कराना है।
अल्मोड़ा से जुड़े हैं तार
जानकारी के अनुसार जैंती तहसील गांव ल्वाली से धोनी के पिता पान सिंह धोनी ने 40 साल पहले पलायन कर लिया था। वह रोजगार के लिए रांची चले गए। बाद में वह वहीं रहने लगे। हालांकि अभी धोनी के पिता धार्मिक आयोजनों में गांव में आते हैं। महेंद्र सिंह धोनी का परिवार आखिरी बार साल 2004 में अपने गांव आया था।
स्थानीय लोगों की मानें तो उत्तराखंड राज्य गठन से पहले इसी गांव में धोनी का जनेऊ संस्कार हुआ था। हालांकि धोनी अपने पैतृक गांव नहीं आते या बड़े स्टेज से उत्तराखंड को याद नहीं करते लेकिन पहाड़ से उनका लगाव उनके बड़े प्रोजेक्ट में छलकता है।