देहरादून: राज्य का युवा अब स्वरोजगार की बाते करने लगा है। उत्तराखंड में नौकरी छोड़कर पर्वतीय क्षेत्रों में जाकर बसने की बात सामान्य है लेकिन जो ऐसा कर पा रहे हैं, वह अपने फैसले से खुश हैं। हां पहाड़ी इलाकों में संसाधन की कमी जरूर है लेकिन उसके बाद भी सुकून के साथ रहने के रास्ते निकाले जा सकते हैं। पर्यटन के क्षेत्र में सबसे ज्यादा स्टार्टअप खुल रहे हैं जिन्हें हम सभी होम स्टे के नाम से जानते हैं। पहाड़ों में ध्यान और एडवेंचर युवाओं को अपनी ओर खींच रहा है। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में केवल भारतीय ही नहीं बल्कि विदेशी में भी रह रहे हैं।

पौड़ी गढ़वाल के सिला गांव में पंकज जुगरान ने अपने पहाड़ों में रहने व एडवेंचर के शौक को पूरा करने के लिए नौकरी को अलविदा कह दिया। रोहतक के इंजीनियरिंग करने के बाद पंकज ने करीब 4 साल नौकरी की। इस दौरान जब भी उन्हें वक्त मिलता को वह दोस्तों के साथ ट्रैकिंग पर निकल पड़ते थे। करीब 7-8 साल से वह ट्रैकिंग कर रहे हैं। इसी शौक ने उन्हें स्वरोजगार करने के लिए प्रेरित किया। इसके लिए उन्होंने साल 2017 में होमस्टे खोलने का फैसला किया और शुरुआत अपने गांव सिला (लैंसडाउन) से की जो गुमखल के पास है। पहले उन्होंने अपने होमस्टे का नाम पहाड़ी होमस्टे रखा था पर बाद में उसे जैक होमस्टे कर दिया।

जैक पहाड़ी होमस्टे चौखंबा, केदारनाथ डोम, नन्दा देवी, कार्तिक स्वामी, चंद्रशीला, नीलकंठ और त्रिशुल की चोटियों से घिरा हुआ है और यह दृश्य बेहद रोमांचक रहता है। पंकज बताते हैं कि उनके होम स्टे में विदेशी भी काफी आते हैं। यहां पर उन्हें घर जैसा अनुभव देने की कोशिश करते हैं। गेस्ट के लिए रुकने के अलावा पहाड़ी व्यंजन की सुविधा भी उपलब्ध है। पंकज का कहना है कि उनके होम स्टे में वह लोग रुकना ज्यादा पसंद करते हैं जिन्हें वादियों से प्यार हो। यहां वह ट्रैकिंग के अलावा बर्डवॉचिंग, योग और ध्यान भी कराते हैं।

इसके अलावा जंगल की सैर भी लोगों को काफी पसंद है। उन्होंने बताया कि देशभर से छायाकार होमस्टे में रुकते हैं। उनके वहां ठहरने वालों से पंकज हर वक्त कुछ नया सीखते हैं और इसे उन्होंने अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना दिया है। होमस्टे में युवाओं के लिए टैंट में रुकने की व्यवस्था भी की गई है। पंकज कहते हैं कि वह नौकरी छोड़कर पहाड़ों सुकून की जिंदगी जी रहे हैं। वह अपने फैसले से खुश हैं। होमस्टे में स्थानीय युवाओं को रोजगार दिया गया है। इसके अलावा दूसरे राज्य व देशों से आने वालों को पंकज उत्तराखंड की लोकसंस्कृति से भी परिचय कराते हैं। पंकज कहते हैं कि महानगरों में रहने में ये सब खो सा जाता है।