सलाम है ऐसे शिक्षक को, विदेश की नौकरी छोड़ पहाड़ के बच्चों को पढ़ा रहे हैं आशीष डंगवाल

सलाम है ऐसे शिक्षक को, विदेश की नौकरी छोड़ पहाड़ के बच्चों को पढ़ा रहे हैं आशीष डंगवाल

टिहरी: शिक्षकों के बिना समाज की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। शिक्षकों की बदौलत ही समाज आगे बढ़ता है। हमारे आसपास ऐसे बहुत से शिक्षक होते हैं जिन्होंने अपनी जिंदगी में बड़े बड़े त्याग किए होते हैं। ऐसे ही एक शिक्षक से आज हम आपको मिलवाने जा रहे हैं। टिहरी गढ़वाल में तैनात राजनीति विज्ञान के शिक्षक आशीष डंगवाल किसी मिसाल से कम नहीं हैं।

पहाड़ों पर हमेशा से पढ़ाई एक बड़ा मसला रहा है। पलायन को भी बढ़ावा देने में इस लचर व्यवस्था का बड़ा हाथ है। कई दूरस्थ इलाकों में तो स्कूलों से शिक्षक दिनों दिन के लिए नदारद मिलते हैं। मगर आशा की एक किरण भी पूरी व्यवस्था को अपने कंधों पर उठाकर रौशनी फैलाने का काम कर सकती है। यही काम आशीष डंगवाल कर रहे हैं।

आशीष डंगवाल वर्तमान में राजकीय इंटर कॉलेज गरखेत टिहरी गढ़वाल में तैनात हैं और राजनीति विज्ञान पढ़ाते हैं। आशीष की लोकप्रियता फेसबुक पर उनकी प्रोफाइल पर लगे ब्लू टिक साफ नजर आती है। दरअसल फेसबुक ने साल 2019 में आशीष डंगवाल की युवाओं में पकड़ को देखते हुए उन्हें इस सम्मान से नवाजा था।

अपने लोकप्रिय स्माइलिंग प्रोजेक्ट से युवाओं के बीच चर्चा का विषय बने शिक्षक आशीष डंगवाल हमेशा ही शिक्षा के क्षेत्र में अभिनव प्रयोग करते रहते हैं। इन दिनों वह बेटियों के हित के लिए भारती प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं। बता दें कि इस प्रोजेक्ट के तहत आशीष उच्च शिक्षा से महरूम रहने वाली छात्राओं को लिए कुछ खास करने वाले हैं।

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आशीष डंगवाल के मुताबिक बेटियों के लिए पढ़ाई का स्तर केवल हाईस्कूल और इंटर तक ही अच्छा है। हर साल खबरें सुनाई देती हैं कि बेटी ने हाईस्कूल, इंटर की परीक्षाओं में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया इतने अंक प्राप्त किए मगर ये खबरें उच्च शिक्षा के क्षेत्र में ना के बराबर हो जाती हैं। इसमें मुख्य रूप से या तो परिवार का सपोर्ट या घर की आर्थिक स्थिति बड़ा कारण बनती है।

ऐसे में शिक्षक आशीष डंगवाल भारती प्रोजेक्ट के तहत पहाड़ की उन बेटियों को उड़ान देने की तैयारी कर रहा है जो कुछ करना चाहती हैं। आपको जानकर खुशी होगी कि आशीष डंगवाल ने खुद एक सरकारी स्कूल से पढ़ाई पूरी की। अच्छा लगता है ये जानकर कि वे खुद सरकारी स्कूल में पढ़ा रहे हैं।

सरकारी स्कूल में सिर्फ पढ़ा भी नहीं रहे बल्कि पूरी व्यवस्था को बेहतर बनाने के प्रयासों में लगे हुए हैं। आशीष के करियर में कई ऐसे मौके भी आए जहां उन्हें लाखों रुपए के पैकेज मिल सकते थे। उन्हें इंडो-अफ्रीकन अंतरराष्ट्रीय संगठन की ओर से बुलावा आया था। लेकिन पहाड़ के लिए कुछ कर गुजरने के जज्बे ने आशीष को कभी यहां से दूर नहीं जाने दिया।

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आशीष डंगवाल चाहते हैं कि सरकारी स्कूलों को स्मार्ट स्कूल जैसा बनाया जाए। ये आशीष के तमाम त्यागों का ही नजीता था कि जब 2019 में भंकोली गांव से उका ट्रांसफर हुआ तो उन्हें शानदार विदाई मिली। उन्होंने गांव में विलुप्त हो चुके घराट (पनचक्की) को लेकर भी काम किया।

बता दें कि आशीष ने स्कूल के बच्चों के साथ मिलकर घराट के स्वरूप को बदला, जिसे फेसबुक पर भी लोगों ने खूब पसंद किया। गांववालों को आशीष की सिर्फ सोच ही नहीं बल्कि उनके व्यवहार में भी जुड़ाव देखने को मिला। आशीष को गांव से खूब आदर-सत्कार देकर विदा किया। इस भावुक विदाई की तस्वीरें सोशल मीडिया, टीवी और अखबारों में छाई रहीं।

The Better Uttarakhand Desk

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