हल्द्वानी: आज के जमाने में कोई भी व्यक्ति आय से दूर नहीं रहना चाहता। कुछ लोग स्वरोजगार के तरीके खोजने के लिए घरों से निकलते हैं तो कुछ नौकरी की तलाश में इधर उधर भटकते हैं। लेकिन बहुत कम ऐसे होते हैं जिन्हें समाज को आगे बढ़ाने की जिद चैन नहीं लेने देती। यह वो लोग होते हैं जो आत्मनिर्भर भारत बनाने के संकल्प को पूरा करने के लिए काम करते हैं। देहरादून के तरुण पंत भी ऐसे ही चुनिंदा लोगों की लिस्ट में शामिल हैं।
26 साल तक कॉरपोरेट में जॉब करने वाले तरुण पंत के दिल में भी उत्तराखंड की लुप्त होती कलाओं को आगे बढ़ाने का जोश था। यही वो जोश था जिस वजह से उन्होंने अपने करियर के पीक पर आराम की नौकरी छोड़ने का मन बना लिया। मौजूदा वक्त में देहरादून के बल्लूपुर में रहने वाले तरुण पंत ने अपनी जिंदगी ग्रामीणों की आजीविका को बढ़ाने के लिए लगा दी है। यह तरुण पंत का ही आइडिया था कि आज करीब 3000 ग्रामीण महिलाओं के उत्पादों को नेशनल व इंटरनेशनल मार्केट मिल रहा है।
तरुण पंत का IDEA
तरुण पंत अपनी नौकरी छोड़कर 2017 में वापस उत्तराखंड लौटे थे। वह बताते हैं उन्होंने यूरोप में काम करते हुए भारत की हस्त शिल्पकला की कीमत समझी। जिसके बाद उन्होंने यह काम करने वाले ग्रामीणों से मिलने का मन बनाया। तरुण पंत ने देश भर के कोने कोने की यात्रा करना शुरू किया। उन्होंने नॉर्थ ईस्ट, वेस्ट बंगाल, ओडिशा, झारखंड, उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश के दूर दराज के गांव में जाकर यहां की लोक हस्त शिल्प कलाकारी को बारीकी से परखा।

बाद में तरुण पंत ने खटीमा सितारगंज बेल्ट में जब ग्रामीणों से बात की तो समस्या सामने आई। यहां पर बास्केट बनाने की बेहतरीन कला लुप्त होने के पीछे का कारण दुखदाई निकला। दरअसल काफी कंपनियों ने समय समय पर यहां के लोगों को ट्रेनिंग दी लेकिन अपने फायदे का सौदा कर वह हमेशा गांवों से शहरों को लौट गए। जिस वजह से ग्रामीणों का अपनी कलाकारी पर से भरोसा उठने लगा। तरुण पंत ने तय किया कि वह इन्हें इसी कलाकारी से बाजार उपलब्ध कराएंगे।
ऐसे हुई शुरुआत
तरुण पंत ने साल 2018 में सबसे पहले 20 थारू महिलाओं से शुरुआत की। इन महिलाओं में पारंपरिक हस्तशिल्प कला को आगे बढ़ाने की ललक थी। इनका साथ देने का काम तरुण पंत ने किया। तरुण ने सबसे पहले इन महिलाओं को अलग अलग जगहों की कलाओं की भी ट्रेनिंग दिलवाई। तरुण पंत बताते हैं कि इंटरनेशनल मार्केट तक पहुंचने के लिए उत्पादों का ईको फ्रेंडली होना जरूरी था। यही कारण था कि रंगों से लेकर इसे तैयार करने वाले सामानों में कुछ बदलाव किए गए।

चूंकि डिज़ाइन डेवलपमेंट और तैयार उत्पादों की मार्केटिंग करना, दो सबसे बड़े पहलू थे। इसलिए इस और अधिक ध्यान दिया गया। ये तय किया गया था कि 20 महिलाएं उत्पाद तैयार करने के साथ साथ आगे महिलाओं को तैयार करेंगी। जिससे एक चेन बन सके और सभी ग्रामीण आजीविका के करीब जाने के साथ साथ इस लुप्त होती कला को भी संरक्षित कर सकें।
मार्केट में उतारे उत्पाद
तरुण पंत बताते हैं कि इन उत्पादों को वर्तमान में अमेरिका, यूरोप समेत 37 देशों से खरीदा जा रहा है। उत्तराखंड की कई बड़ी कंपनियां रुचि दिखा रही हैं। जब तैयार उत्पादों को मार्केट दिलाने की बात आई थी तो ज्यादा दिक्कतें नहीं आई। ग्रामीणों की मेहनत का नतीजा यह रहा कि तैयार उत्पादों को काफी अच्छा रिस्पॉन्स मिला। तरुण पंत बताते हैं कि दो साल के अंतराल में 20 जनों से 2000 जनों को टीम हो गई थी।

फिलहाल वक्त में 3000 ग्रामीण महिलाएं इस दिशा में काम कर रही हैं। तरुण पंत के आइडिया के कारण बैंबू समेत विभिन्न जगहों की शिल्प कला को भी इसमें जोड़ा जा रहा है। रिस्पॉन्स अच्छा होने से सभी कलाकारों को 10 से 15 हजार रुपए प्रति महीने की कमाई हो रही है। तरुण पंत की मानें तो अब सफलता देखकर युवा भी इस काम की ओर आकर्षित हो रहे हैं। हालांकि कोरोना काल ने काफी असर काम पर डाला था। लेकिन अब दोबारा से गाड़ी चल पड़ी है।
तरुण पंत ने बताया कि पतंजलि जैसी बड़ी कंपनियां भी रुचि दिखा रही हैं। वे बताते हैं कि कोरोना काल में कलाकारों को गारमेंट्स बनाने के लिए प्रेरित किया गया। जिसके लिए NIFT से एक्सपर्ट्स की टीम बुलाई गई थी। ट्रेनिंग के कुछ समय बाद ही ग्रामीण इसमें भी निपुण हो गए थे। इसी वजह से कोरोना काल में भी आय को ज्यादा झटका लगने से बचा लिया गया।
ग्रामीणों के लिए लगा दिया अच्छा खासा करियर
तरुण पंत के करियर की बात करें तो उनके पास विज्ञान में स्नातक की डिग्री और प्रबंधन में स्नातकोत्तर की डिग्री है। उनके पास एक विविध और बहुमुखी पोर्टफोलियो है। तरुण पंत ने भारत और विदेशों में कॉरपोरेट्स के साथ काम किया है। उनके 26 वर्षों के कॉर्पोरेट अनुभव ने ग्रामीण आजीविका के लिए स्थायी समर्थन प्रणाली विकसित करने और ग्रामीण कारीगरों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने में मूल्यवर्धन किया है।

बता दें कि यात्रा के साढ़े तीन वर्षों में वह उत्तराखंड राज्य के सितारगंज क्षेत्र में 3000+ कारीगरों के साथ जुड़ने में सक्षम हैं। इतना ही नहीं वह बाजार के अनुकूल उत्पादों और ग्राहकों को विकसित करने में उनकी मदद कर रहे हैं। मौजूदा वक्त में पूरी टीम ग्रास प्रोडक्ट्स, बैंबू प्रोडक्ट्स और गारमेंट्स आदि तैयार कर रही है। तरुण पंत का सपना है कि वह इसी तरह से 20000 ग्रामीण महिलाओं को रोजगार उपलब्ध करा सकें। गौरतलब है कि देश को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में तरुण पंत जैसे कार्यशील व्यक्ति बेहतरीन काम कर रहे हैं।